Discussion in "New Ideas regarding projects" started by    Ûž TPS Ûž    Sep 2, 2008.
Tue Sep 02 2008, 03:46 pm
#1
[font=Verdana]Dear friends
As we all know that Bihar is facing Kosi River Flood problem. Can't we do something for humanity ?
I call smart solutions from all the technocrats to face this disaster
(1) Smart Design for Life jacket (it must be economic and easy -fast to construct)
(2) Water Purification system -Coz Drinking water is a big challenge there
(3)Rescue Boats - it must be economic and easy -fast to construct
and many more suggestions Invited
please mail me [email protected]
[/font]
We don't Need Money We need only smat foolproof Designs







http://www.gisdevelopment.net/application/geology/geomorphology/geom0002pf.htm



[ Edited Tue Sep 02 2008, 03:47 pm ]
Wed Sep 03 2008, 03:07 am
#2
कोसी के कहर से कराह रहे बिहार की आँखें बेबसी के आँसू रोते-रोते अब पथरा गई हैं। जिंदगी बेहाल है और सूबा बदहाल। पूर्णिया का बाँध टूटने और रविवार को नेपाल द्वारा कोसी नदी में दो लाख क्यूसेक पानी छोड़ने से बाढ़ का खतरा दोबारा बढ़ गया है। हालाँकि कुदरत के कोप से बिहार को बचाने के लिए मदद के कई हाथ उठे हैं, लेकिन फिलवक्त तमाम कोशिशें इस तबाही के सामने बौनी साबित हो रही हैं।

बिहार में 14 दिनों से कोसी नदी की प्रलंयकारी बाढ़ में से अब तक 4 लाख 67 हजार लोगों को बचाया जा सका है। राज्य के आपदा प्रबंधन विभाग के प्रधान सचिव आरके सिंह ने रविवार को बताया कि बाढ़ से सर्वाधिक प्रभावित इलाकों में बचाव एवं राहत कार्य युद्धस्तर पर चलाए जा रहे हैं। सिंह ने कहा प्रभावित इलाकों में सेना के पहले 4 हेलिकॉप्टर राहत कार्य में जुटे थे, लेकिन आज दो और हेलिकॉप्टर प्रभावित क्षेत्रों में भेज दिए गए हैं। इसके अलावा बाढ़ग्रस्त इलाकों में सेना के 11 कॉलम, जलसेना की तीन टीम, नेशनल डिजास्टर रिसपांस फोर्स (एनडीआरएफ), सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी) के जवान युद्धस्तर पर राहत एवं बचाव कार्य में जुटे हैं।

बाढ़ से अब तक नौका दुर्घटना एवं अन्य घटनाओं में मधेपुरा में 54, सुपौल में 18, भागलपुर में 7, पश्चिम चंपारण के बगहा में तथा 4, पूर्णिया और समस्तीपुर में 3-3 लोगों की मौत हो चुकी है। बाढ़ से अब तक 93 लोगों की मौत हो चुकी है, वहीं बीस लाख से अधिक की आबादी प्रभावित है।

पूर्णिया से प्राप्त जानकारी के मुताबिक महानंदा, कन्कई, दास और पनार समेत कई अन्य नदियों के जलस्तर में वृद्धि के कारण अमौर, वैसा, बायरती और उगरूआ प्रखंड के करीब 50 गाँव में बाढ़ का पानी भर गया है। नेपाल द्वारा कोसी नदी में करीब दो लाख क्यूसेक पानी छोड़े जाने से नदियों में उफान के कारण बनमनखी एवं धमदाहा अनुमंडल में एक से ढ़ाई फीट तक बाढ़ का पानी बह रहा है, जिसके कारण लोग शहर तथा अन्य सुरक्षित स्थानों पर पलायन कर रहे हैं।

जिलाधिकारी श्रीधर सी. ने बताया पूर्णिया शहर और मधेपुरा की सीमा से लगे बनमनखी, रूपौली, भवानीपुर, बड़हरा एवं धमदाहा प्रखंडों में बाढ़ पीड़ितों ने सुरक्षित स्थनों पर शरण ले रखी है। उन्होंने कहा कि पूर्णिया शहर मुख्यालय समेत कई अन्य स्थानों पर शिविर के निर्माण के लिए स्थलों का चयन किया गया है। अनुजनगर व बिलौरी में पहले से ही राहत शिविर चलाए जा रहे हैं।

बगहा से मिली खबरों के अनुसार नेपाल में गंडक के जलग्रहण क्षेत्रों में जारी बारिश के कारण वाल्मीकिनगर गंडक द्वारा रविवार को गंडक नदी में करीब दो लाख क्यूसेक पानी छोड़े जाने से पश्चिम चंपारण जिले के गंडक दियारा के ठकराहा, भीतहा, मधुबनी एवं पिपरासी प्रखंडों की स्थिति में यथावत बनी हुई है।

आधिकारिक सूत्रों ने बताया चारों प्रखंडों के जल संग्रहित क्षेत्रों में बसे 80 से अधिक गाँवों की दो लाख की आबादी बाढ़ प्रभावित है। इन प्रखंडों का सड़क संपर्क जिला मुख्यालय बेतिया एवं अनुमंडल मुख्यालय बगहा से टूटा हुआ है। बाढ़गस्त क्षेत्रों के लोग ऊँचे एवं सुरक्षित स्थानों पर शरण लिए हुए हैं। इस बीच बगहा नगर के शास्त्रीनगर, कैलाशनगर, श्रीनगर आदि तटवर्ती मोहल्लों में गंडक का भारी दबाव बना हुआ है।

अररिया से प्राप्त रिपोर्ट के अनुसार कोसी नदी के जलस्तर में उफान के जिले के भरगमा, नरपतगंज, रानीगंज और फारबिसगंज प्रखंड के 42 पंचायत की करीब 70 गाँव प्रभावित हैं, वहीं बाढ़ का पानी फारबिसगंज प्रखंड कार्यालय रेफरल अस्पताल समेत कई प्रमुख सड़कों पर एक से चार फीट तक पानी बह रहा है। स्थानीय प्रशासन सेना के जवान एवं अन्य स्वयंसेवी संगठनों की सहायता से अब तक 9 हजार 592 लोगों को बाढ़ग्रस्त इलाकों से निकाल कर सुरक्षित स्थानों पर पहुँचाया गया है।

रिपोर्ट के अनुसार जिले में सेना के हेलीकॉप्टरों की सहायता से पीड़ितों के बीच आठ हजार से अधिक खाने के पैकेट गिराए गए हैं।
PTI
नरपतगंज, फारबिसगंज, भरगामा और रानीगंज में 45 राहत शिविर चलाए जा रहे है, जहाँ लोगों को भोजन, दवा समेत अन्य जरूरी वस्तुएँ उपलब्ध कराई जा रही हैं। इसके अलावा जिले में कुछ 19 चिकित्सा शिविर चलाए जा रहे हैं, जिसमें 32 चिकित्सकों को तैनात किया गया है।

मधेपुरा से प्राप्त समाचार के अनुसार कोसी नदी में उफान के कारण जिले के कुमारखंड, शंकरपुर, मुरलीगंज, उदाकिशनगंज, मधेपुरा सदर, ग्वालपाड़ा, बिहारीगंज, चौसा, आलमनगर, उरैनी और सिहेंश्वर प्रखंड की लगभग 15 लाख से अधिक की आबादी बाढ़ से प्रभावित है। जिलाधिकारी एवं पुलिस अधीक्षक आवास समेत कई मुख्य मार्गों पर बाढ़ का पानी बह रहा है।

मधेपुरा जिले की करीब 90 फीसदी आबादी सुरक्षित स्थानों की ओर पलायन कर गई है। शहर के सभी सरकारी कार्यालय, शिक्षण संस्थान तथा विभिन्न दुकानें बंद हैं।

सुपौल जिले के नौ प्रखंडों में प्रलंयकारी बाढ़ का कहर जारी है। जिले के प्रतापगंज, वसंतपुर, छातापुर, त्रिवेनीगंज, राघोपुर, निर्मली, मरौना सरायगढ़ और किशनपुर प्रखंड के 91 पंचायतों के करीब 325 गाँव की दस लाख से अधिक की आबादी बाढ़ की चपेट में है।

जिलाधिकारी एन. सरवन कुमार ने बताया बाढ़गस्त क्षेत्रों में फँसे करीब 60 हजार लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुँचाया गया है। उन्होंने बताया इस समय जिले में 38 राहत शिविर और 26 चिकित्सा शिविर चलाए जा रहे हैं।

मुजफ्फरपुर इलाके में बागमती और लखनदेही नदी के जलस्तर में लगातार हो रही वृद्धि के कारण जिले के औराई, कटरा, गायघाट मीणापुर और हथौड़ी प्रखंडों के करीब 300 गाँव बाढ़ की चपेट में है। जिले के औराई और कटरा प्रखंड की सभी सड़कों पर पानी आ गया है। इससे लोगों को काफी मुश्किलें पेश आ रही हैं। जिले में बाढ़ से करीब तीन लाख लोग प्रभावित हैं।

मुजफ्फरपुर के जिलाधिकारी विनय कुमार ने बताया अभी तक जान माल के नुकसान की कोई सूचना नहीं है। जिला खाद्य आपूर्ति पदाधिकारी को प्रभावित क्षेत्रों में सुरक्षित क्षेत्रों में खाद्यान पहुँचाने का निर्देश दिया गया है।

केन्द्रीय जल आयोग के अनुसार राज्य की सात प्रमुख नदियाँ गंगा, घाघरा, बूढ़ी गंडक, बागमती, कमलाबालान, महानंदा और कोसी खतरे के निशान से ऊपर हैं। गंगा पटना के गाँधी घाट में 38, हाथीदह में 37, कहलगाँव में 61, साहेबगंज में 108 और फरक्का में 130, घाघरा गंगपुर सिसवन में 41, बूढ़ी गंडक खगड़िया में 86, बागमती बेनीबाद में 45, कोसी कुरसेला में 97, कमलाबालान झंझारपुर में 01, तथआ महानंदा ढ़ेगराघाट और झावा में क्रमशः 74 और 63 सेंटीमीटर खतरे के निशान से ऊपर है।
Wed Sep 03 2008, 03:14 am
#3
बाढ़ प्रभावित लोग राहत शिविरों की व्यवस्था से नाराज हैं बाढ़ की मार झेल रहे बिहार की हालत दिन-ब-दिन और बदतर होती जा रही है। राहत के लिए राज्य सरकार के बड़े वादे हैं और केंद्र की बड़ी घोषणाएँ पर जमीनी सच की टोह लीजिए तो तस्वीर बहुत गंदी, अभावग्रस्त और तकलीफदेह नजर आती है।

सहरसा और पटना के बीच मुख्य संपर्क मार्ग जो कोसी क्षेत्र के जि‍लों को पटना से जोड़ता है, वो कभी भी टूट सकता है। राष्ट्रीय राजमार्ग एनएच 107 पर लगातार पानी भर रहा है। कुछ जगहों पर हमने पाया कि पानी दो फीट तक चढ़ गया है। अगर पानी ऐसे ही जमा होता रहा तो सड़क के रास्ते सहरसा से संपर्क पूरी तरह से टूट जाएगा।

कई राहतकर्मी, मीडियाकर्मी इस चिंता में हैं कि सहरसा का रास्ता बंद हुआ तो वे वापस कैसे लौटेंगे और राहतकार्य कैसे जारी रह सकेगा। अगर पानी राजमार्ग पर ऐसे ही बढ़ता रहा तो राहतकर्मी और मीडियाकर्मी सहरसा से निकलने के लिए मजबूर हो जाएँगे।

लेकिन असल चिंता यह है कि राहत शिविरों की स्थिति पर, अगर राहतकार्यों में तेजी नहीं दिखाई गई और राहत का स्तर नहीं सुधरा तो बिहार महामारी की चपेट में आ जाएगा और स्थितियाँ नियंत्रण से बाहर हो जाएँगी।

राहत शिविरों की स्थिति : सोमवार को सुबह से ही मैं सहरसा कॉलेज में मौजूद था। यहाँ यह सोचकर गया कि ग्रामीण इलाकों में लगे राहत शिविरों की दर्दनाक स्थिति से यहाँ तस्वीर कुछ बेहतर होगी, क्योंकि यह तो जि‍ले का मुख्यालय है।

असल चिंता है राहत शिविरों की स्थिति पर, अगर राहतकार्यों में तेजी नहीं दिखाई गई और राहत का स्तर नहीं सुधरा तो बिहार महामारी की चपेट में आ जाएगा और स्थितियाँ नियंत्रण से बाहर हो जाएँगी।

शिविर के अंदर का मंजर किसी भी तरह की राहत देता नज़र नहीं आ रहा था। लोगों को खराब गुणवत्ता का खाना मिल रहा था। शिविर में 5 हजार लोग हैं और शिविर पिछले एक सप्ताह से चल रहा है, पर दवाएँ आज पहुँच पाई हैं, जो दवा पहुँची हैं वो 500 लोगों को एकबार खिलाने भर की हैं। इसमें भी पानी से होने वाली बीमारियों की कोई दवा नहीं है, जबकि सबसे ज्‍यादा संक्रमण पानी की वजह से ही फैल रहा है।

यहाँ तक कि शिविर तक पहुँचने वाले कई लोग घायल हैं। पानी में कुछ के पैर सड़ गए हैं और कुछ के फफोले पड़े हैं, लेकिन किसी को डिटॉल तक शिविर में नसीब नहीं है।

BBC BBC
शिविर में 3 चिकित्सक थे, लेकिन कोई नहीं बता सका कि दवाओं की आपूर्ति और कमी के लिए जि‍म्मेदार कौन है यह भी स्पष्ट नहीं हुआ कि दवा स्थानीय विधायक की कृपा से आई या प्रशासन की ओर से।

राहत कम, प्रचार ज्‍यादा : सबसे तकलीफदेह तो यह है कि राहत देने वाले कई संस्थान, महकमे राहत से ज्‍यादा प्रचार पर जोर दे रहे हैं। लोगों को राहत शिविरों में पर्याप्त दवाएँ, रौशनी और शौचालय जैसी सुविधाएँ कम ही मिल जा रही हैं।

विभागों और लोगों की ओर से शिविर तो लग रहे हैं लेकिन शिविर से पहले ऑर्डर होते हैं बैनर और बिना बैनर के, यानी बिना प्रचार के राहत पहुँचाने वाले हाथ कम हैं।

ऐसा ही एक उदाहरण शिक्षा विभाग की ओर से मिला। विभाग की जीप और दस्ता लोगों के बीच जाने को तैयार था, लेकिन जा नहीं रहा था, कारण पूछा तो पता चला कि जीप के सामने बाँधा जाने वाला साइनबोर्ड तैयार नहीं है, यानी प्रचार न हुआ तो राहत, मदद का क्या मतलब।

पॉलीटेक्निक में चल रहे राहत शिविर का शौंचालय इसलिए चालू नहीं हो सका, क्योंकि उसका बैनर तैयार नहीं हो पाया था। इन बैनरों पर एक ही बात लिखी होती है- अमुक राहत अमुक व्यक्ति या संस्था के सौजन्य से दी जा रही है।

राजा चौपट, अंधेरे में नगरी : राहत के लिए सहरसा मुख्यालय क्षेत्र में क़रीब 10-12 शिविर लगाए गए हैं। यहाँ सबसे बदतर हालत है, शौचालय और बिजली आपूर्ति की। शिविर अँधेरे में डूबे हैं और गंदगी बढ़ती जा रही है।

केवल पूर्णिया के जिलाधिकारी को ही लोगों ने क्षेत्र में दौरा करते देखा है। बाकी सहरसा, सुपौल, और मधेपुरा के जिलाधिकारी एयरकंडीशंड कार्यालय में ही बैठे हैं। वहीं से जायजा ले रहे हैं।

ग्रामीण इलाकों के राहत शिविरों की हालत तो बहुत ही दर्दनाक है। वहाँ राहत के नाम पर कुछ नहीं जैसी ही स्थिति है। लोग अपने आप के भरोसे जीने को मजबूर हैं। एक दिक्कत और है, सैकड़ों की तादाद में नावें राहत के लिए अलग-अलग जगहों से प्रभावित जिलों के मुख्यालयों में पहुँच रही हैं। इसमें से 10-15 प्रतिशत नाव तो पानी में उतारते ही खराब साबित हो जा रही हैं।

लेकिन कई नावें जि‍ला मुख्यालयों में ही पड़ी रह जा रही हैं। कारण यह है कि राज्य सरकार इस्तेमाल के लिए किसी भी नाव को भेजने से पहले उस पर रंग-रोगन कराती हैं और राज्य सरकार की मोहर लगवाती हैं।

इन मुख्यालयों से मोहर लगवाने के इंतजार में नाव कई दिन इस्तेमाल से बाहर रहती हैं। ऐसे में अहम सवाल है, राजनीति और प्रचार के बिना क्या राहत नहीं पहुँचाई जा सकती है। सवाल कई हैं, देखते है, जवाब कितने निकल पाते हैं।

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Richardedils
Wed Apr 24 2024, 04:07 am
ChrisLub
Tue Apr 23 2024, 05:21 pm
Davidbab
Tue Apr 23 2024, 10:41 am
Richardrit
Tue Apr 23 2024, 09:54 am
HenryLaf
Mon Apr 22 2024, 03:50 pm
bleradrar
Mon Apr 22 2024, 06:38 am
ppu-pro_ka
Sun Apr 21 2024, 07:39 pm
Infewow
Sun Apr 21 2024, 06:30 pm