Discussion in "Chill out!" started by    Ûž TPS Ûž    Sep 16, 2008.
Tue Sep 16 2008, 01:03 am
#1

सुबह सुबह सेठ लक्खीमल मिल गये, जिनसे पिछले महीने मैंने DCCCLXXXVIII रुपये उधार लिये थे. अपना रास्ता बदलता कि उससे पहले ही सेठजी की आवाज़ आयी, “क्यों उधारचंद, कब वापस कर रहे हो”? मैंने कहा “बस पहली तारीख को पगार मिलते ही सब चुकता कर दूंगा. सेठजी बोले वो छोड़ो, XIV रुपया टक्का के हिसाब से जो सूद बनता है, सो दे दो अभी. मैंने पूछा “कितना हुआ”? सेठजी ने हिसाब तो शुरु कर दिया, पर पूरा नहीं कर पाये! भला हो उनका जो रोमन पद्धिति से हिसाब करते हैं!

अरब के व्यापारी इस मामले में बहुत होशियार निकले. उन्होंने 0 से 9 तक के सभी अंक भारतीयों से सीख लिये. जोड़-घटाना-गुणा-भाग भी सीख लिया. और तो और सारे विश्व में हमारी संख्या पद्धिति का प्रचार भी कर दिया. सो सारी दुनियां के लिये 0-9 कहलाये ‘अरेबिक नम्बर्स’ और अरब लोगों के लिये कहलाये ‘हिंदसा’, हिंदुस्तान से जो सीखे थे उन्होंने.

अब चमत्कार देखिये, जोड़-घटाना-गुणा-भाग में तो सहूलियत है ही (सो तो सेठ लक्खीमल जी ने आपको समझा ही दिया है!) पर और भी लाभ हैं. अब सीधा सा सवाल है - 1,2,3,4,….. कुल कितनी संख्यायें है? असीम, अगणित, अनंत! और रोमन पद्धिति में ज्यों-ज्यों संख्या बड़ी हुई, एक और नये चिन्ह (I, V, X, L, C, D, M इत्यादि) की आवश्यकता हुई. अत: रोमन पद्धिति अक्षम है सभी संख्याओं के निरूपण में! तो ऐसी पद्धिति तो स्वयं में अपूर्ण है, तो उससे और क्या अपेक्षा रखनी! दूसरी ओर भारतीय पद्धिति में 0 से लेकर 9, ये 10 चिन्ह ही पर्याप्त हैं किसी भी बड़ी से बड़ी संख्या को निरूपित करने के लिये!

जब भारतीय पद्धिति तेरहवीं शताब्दी में यूरोप पहुची तो रोमन कैथोलिक चर्च ने जमकर इसका विरोध किया और भारतीय पद्धिति को ‘शैतान का काम’ कहा! परन्तु सही बात कब तक दबायी जा सकती थी, सो अब परिणाम सबके सामने है.

और तो और, भारतीयों ने यह भी सिद्ध किया कि किसी भी संख्या का निरूपण मात्र दो चिन्हों (0 और 1) के माध्यम से ही संभव है. जी हाँ, यहाँ वर्तमान बाइनरी सिस्टम (द्विअंकीय प्रणाली) की ही बात की जा रही है, जो आज समूचे कम्प्यूटर विज्ञान का आधार है. पिंगला ने पांचवीं शताब्दी ई.पू. में ही यह द्विअंकीय प्रणाली खोज निकाली था, और वह भी साहित्य के माध्यम से! उनके छंद सूत्रों में, जो मूलत: संस्कृत श्लोकों के विन्यास और उनकी लंबाई को मापने के लिये प्रयोग किये गये थे, पूरी द्विअंकीय प्रणाली छिपी हुई है! सोचिये जो काम यूरोपीय लोग तेरहवीं शताब्दी तक अनगिनत चिन्हों के साथ करते थे (सो भी अधूरा!), वह पिंगला ने मात्र दो चिन्हों में कर दिखाया था ईसा से 500 साल पहले! यहां यह भी इंगित करना उचित होगा कि उस समय शून्य की संकल्पना करना कितनी बड़ी उपलब्धि रही होगी. आज का कम्प्यूटर विज्ञान उसी भारतीय प्रणाली, उसी गहरी सोच पर आधारित है.

कभी-कभी मेरे दिल में ख़याल आता है… कि भारत इस सबका पेटेण्ट ले ही लेना चाहिये, इससे पहले कि यह भी पराया हो चले!

Get Social

Information

Powered by e107 Forum System

Downloads

Comments

davidCapse
Wed Nov 13 2024, 07:19 am
KinogoWek
Wed Nov 13 2024, 06:59 am
NickCapse
Wed Nov 13 2024, 04:19 am
Entaile
Wed Nov 13 2024, 03:49 am
Kevinlix
Wed Nov 13 2024, 01:04 am
Jeffreywes
Tue Nov 12 2024, 10:28 pm
Jerrynug
Tue Nov 12 2024, 10:17 am
Georgemox
Mon Nov 11 2024, 11:44 pm